शनिवार, 14 जून 2008

ये सांझ मेरी असनाई में...

ये सांझ मेरी असनाई में कुछ यादें और सजा दे तू...
वो दूर रहे चाहे जितना मिलने की आस बंधा दे तू॥
दुख देख मेरे जग हंसता है...
मेरे भी होंठ मचलते है...
अंतर दोनों के हिलने में...
मुझकों भी हंसना सिखला दे तू...

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खूबसूरत हो तुम इतनी.....

खूबसूरत हो तुम इतनी मानना पड़ेगा।
चांद को भी तुमसे हारना पड़ेगा।।
चांद के दीवाने होते हैं हजारों।
मुझे तो अपने चांद को छुपाना पड़ेगा।।