ये सांझ मेरी असनाई में...
ये सांझ मेरी असनाई में कुछ यादें और सजा दे तू...
वो दूर रहे चाहे जितना मिलने की आस बंधा दे तू॥
दुख देख मेरे जग हंसता है...
मेरे भी होंठ मचलते है...
अंतर दोनों के हिलने में...
मुझकों भी हंसना सिखला दे तू...
लेबल: कविता
ये सांझ मेरी असनाई में कुछ यादें और सजा दे तू...
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