शनिवार, 14 जून 2008

ये सांझ मेरी असनाई में...

ये सांझ मेरी असनाई में कुछ यादें और सजा दे तू...
वो दूर रहे चाहे जितना मिलने की आस बंधा दे तू॥
दुख देख मेरे जग हंसता है...
मेरे भी होंठ मचलते है...
अंतर दोनों के हिलने में...
मुझकों भी हंसना सिखला दे तू...

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1 टिप्पणियाँ:

यहां 29 अगस्त 2009 को 4:12 am बजे, Blogger somadri ने कहा…

y cute and impressive poetry..
keep the good work...

http://somadri.blogspot.com

 

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